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प्रवल झंझा के झकोरे, बरसता था अमित जल। वृक्ष टप-टप टपकता था, वीर थे तप में अचल ॥
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क्षीर-सागर के कमल पर, ऊर्ध्व पाण्डुकवन शिलापर वीर पार्थिवीधारणा मेंलीन थे शुचि साधनाकर
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