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छुड़ा कर लाने और बृक्षों तक से उनका पता पूछने वाले श्री रामचन्द्र जी का प्रेम गर्भवती सीता जी को बनों में निकालते समय कहां भाग गया था ? देवी-देवता, यन्त्र-मन्त्र, मात-पिता, पुत्र-मित्र आदि किसी की भी सारे संसार में कोई शरण नहीं है । यदि पुण्य का प्रताप है तो शत्रु तक मित्र बन जाते हैं। पुण्यहीन को सगे और मित्र तक जवाब दे देते हैं। ____सारे संसार में यदि कोई शरण्य है तो अर्हन्त भगवान् ही हैं। क्योंकि द्रव्य रूप से जो आत्मा अर्हन्त. भगवान् की है वही आत्मा हमारी है। जो गुण अर्हन्त भगवान् की आत्मा में प्रकट हैं, वे ही गुण हमारी आत्मा में छुपे हुये हैं। अर्हन्त होने से पहले उनकी आत्मा भी हमारे समान कर्मों द्वारा मलीन और संसारी थी। और हम संसारी जीव भी यदि अपनी आत्मा के कर्मरूपी मैल को उन के समान दूर करदें तो हमारी आत्मा के गुण प्रकट होकर हमारी पर्याय भी शुद्ध होकर अहन्त भगवान् के समान सर्वज्ञ हो जाये । इस लिये जो अर्हन्त भगवान को द्रव्य रूप से, गुण रूप से और पर्याय रूप से जानना है । वह अपनी आत्मा और इसके गुणों को अवश्य जानता है, और जो अपनी आत्मा को जानता है, वह निज-पर के भेद को जानता है । और जो इस भेद-विज्ञान को जानता है, उसका मोह संसारी पदार्थों से अवश्य छूट जाता है ! और जिसकी लालसा अथवा रागद्वेष नष्ट होजाते हैं, उसका मिथ्यात्व अवश्य जाता रहता है। और जिसका मिथ्यात्व दूर हो गया उसको सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाता है । सम्यग्दृष्टि का ज्ञान सम्यकज्ञान और उसका चरित्र सम्यक चरित्र हो जाता है। इन तीनों रत्नों की एकता मोक्षमार्ग है, जो अविनाशक सुखों और सच्ची शान्ति का स्थान है। इस लिये १-३. सम्यकदर्शन (सोनगढ़) पृ० ६-८ । २८६ ]
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