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________________ स्त्री, पुत्र, धन आदि संसार के सारे पदार्थ नष्ट होने वाले हैं। जब देवी-देवता और स्वर्ग के इन्द्र तथा चक्रवर्ती सम्राट सदा नहीं रह सके तो मेरा शरीर कैसे रह सकता है ? केवल आत्मा ही सदा से है और सदा रहनेवाली है। इसके अलावा जितने भी संसार के पदार्थ हैं, वे सब अनित्य हैं, आत्मा से भिन्न हैं, एक दिन उनसे अवश्य अलग होना है । पुण्य के प्रताप से संसारी पदार्थ स्वयं मिल जाते हैं और अशुभ कर्म आने पर स्वयं नष्ट होजाते हैं, तो फिर उनकी मोह-ममता करके कर्मों के आस्रव द्वारा अपनी आत्मा को मलीन करने से क्या लाभ ? २-अशरण भावना दल-बल देवी-देवता, मात-पिता परिवार । मरती बरियां जीव को, कोई न राख नहार' ॥ इस जीव को समस्त संसार में कोई शरण देने वाला नहीं है। जब पाप कर्म का उदय होता है तो शरीर के कपड़े भी शत्र बन जाते हैं । जब प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव को निरन्तर छः माह तक आहार नहीं हुआ, तो उनके जन्मोपलक्ष में १५ मास तक साढ़े तीनकरोड़ रत्न प्रतिदिन बरसाने वाले देव कहां चले गये थे ? सीता जी के अग्नि-कुण्ड को जलमयी बनाने वाले देव, रावण के द्वारा सीता जी को चुराते समय कहां सोगये थे ? हजारों योद्धाओं के प्राणों को नष्ट करके रावण के बन्धन से सीता जी को १. No army, power and invention, Mother, fathere and the kins; All at the time of Death Shall none keep ye in, .-2nd. Meditation of No-Shelter. [ २८५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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