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________________ वैद्य-सार १०५-ज्वरातिसारादौ जयसंभवगुटिका सूतेन्द्रायसभस्महिंगुलविषं व्योषं च जातीफलं । धत्तूरस्य च वीजटकमिदं गंधाजमादाजया ॥ वाराटं हि प्रदाय भस्म सुभिषक् संमईयेत् धूर्त। स्वरसैः वै जयसंभवां च गुटिका गुंजामितां कल्पयेत् ॥१॥ वरातिसारं क्षपयेत् जयसंभवभाग घटी अनुपानविशेषेण पूज्यपादेन भाषिता । टीका-शुद्ध पारा, लौहभस्म, शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध विषनाग, सोंठ, मिर्च, पीपल, जायफल, धतूरे के बीज, सुहागे की खील, शुद्ध गंधक, अजमोदा और अरबी, कौड़ी की भस्म इन सब को बराबर बराबर लेकर धतूरे के रस से मर्दन करे और गोली बनावे। यह गोली अनुपान-विशेष से एक एक रत्तो खाने पर ज्वरातिसार को नाश करती है यह पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। १०६-कुष्ठे महातालेश्व सः तालं ताप्यं शिलासूतं शुद्ध सेंधवटंकणम् । समां चूर्णयेत् खल्वे सूताद्विगुणगंधकम् ॥१॥ गंधसाम्यं मृतं तानं सुवर्णकान्तमभ्रकम् । नीलग्रीवं द्विरजनीतालभागयुतं समम् ॥२॥ जंबीरनीरैः संमर्यः तत्सर्व दिनपंचकम् । सहि षड्भिः पुटैः पाच्यो भूधरे संपुटरोदरे ॥३॥ पुटे पुटे द्रवर्मयः सर्वमेतञ्च षट्पलम् । द्विपलं मारितम् तानं लौहभस्म चतुःपलम् ४॥ जंवीराम्लेन तत्सर्व दिनं मद्य पुटे लघु। निशच्चांशं विषं क्षिप्त्वा तत्र सर्व विचूर्णयेत् ॥५॥ महिषाज्येन च संमिश्रः निष्कश्च पुंडरीकनुत्। मध्वाज्यैः कर्कटीवीजं कर्षमात्रं लिहेदनु ॥६॥ मधुनाज्येन वा सेवेत् कुष्ठरोग विनाशयेत् । महातालेश्वरोनाम: पूज्यपादेन भाषितः ॥७॥ टीका-राद्ध तकिया हरताल, सोनामक्खी, शुद्ध शिलाजीत शुद्ध पारा, सेंधानमक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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