________________
वैद्य-सार
पिप्पली मूलकक़ाथं सपिप्पल्या पिबेदनु । दंडवतं धनुर्वात शृंखलाबातमेव च ॥४॥ खञ्जातं पंगुवा कंपवातं जयेत् सदा । मातंगवातसिंहोऽयं पूज्यपादेन भाषितः ॥५॥
टोका - शुद्ध पारे की भस्म, हीरे की भस्म, तामे की भस्म, कांतलौह भस्म, सोना Hear की भस्म naकिया हरताल की भस्म, शुद्ध नीला सुरमा, तूतिया की भस्म तथा समुद्रफेन ये सब बराबर बराबर तथा पांचों नमक १ भाग लेवे और सब को मिला कर थूहर के दूध से दिन भर मर्दन कर बाद भूधर यंत्र में पुटपाक करे पश्चात् और सब को खरल में डालकर पारे से चौथाई भाग शुद्ध विषनाग डाले एवं खूब घोंटे और उसको १ माह तक अदरख के रस के साथ सुबह शाम सेवन करे तथा ऊपर से पीपल और पीपरामूल का काढ़ा पिये तो इससे दंडवात, धनुर्वात, शृंखलाबात, खंजनात, पंगुबात कंपवात वगैरह सब शांत हो जाता है । यह पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ बड़बानल रस बहुत उत्तम है।
m
६५
१००
सन्निपातादौ सिद्धगणेश्वररसः
पारदं दरदं गंध वृद्धया चेकोत्तरं क्रमात । नीलग्रीवस्य सर्वाशं मयेत् खल्वके बुधः ॥ १ ॥ विजयाकनकषैः सप्त वा विमर्दयेत् । दीयते बल्लमात्रेण पिप्पल्या मधुनार्द्रा कैः ॥२॥ त्रिदेोषं सन्निपातादिसर्वदुष्टज्वरं जयेत् । शोतेोपचारः कर्तव्यः मधुराहारसेवनं ॥३॥ सिद्धो गणेश्वरा नाम पूज्यपादेन निर्मितः । टीका - शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध सिंगरफ २ भाग, शुद्ध गंधक ३ भाग, तथा शुद्ध विषनाग छः भाग, इन सब को एकत्रित कर के भांग और धतूरा के स्वरस से तथा सोंड मिर्च पीपल के काढ़े से अलग अलग सात सात बार मर्दन करे और इसको तीन तीन रती की मात्रा में प्रदख तथा मधु के साथ देवे तो त्रिदोष, सन्निपात ज्वर भी शांत होता हैं। इसके ऊपर शीतोपचार तथा मधुर भोजन का सेवन करना चाहिये। यह सिद्ध गणेश्वर रस श्री पूज्यपाद स्वामी ने बनाया है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com