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________________ ६४ वैद्य-सार भाग, शुद्ध तवकिया हरताल छ: भाग, शुद्ध जमालगोटा के बीज छः भाग, सुधागे का फूला पांच भाग, शुद्ध धतूरे के बीज़ चार भाग तथा तामे की भस्म तीन भाग इन सब को एकत्रित कर के चित्रक की जड़ के काढ़े से घोंटकर मूंग के बराबर गोली बनावे तथा अदरख के रस के साथ सेवन करे तो शीत ज्वर तथा सन्निपात ज्वर शांत होता है। यह बड़वानल रस पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ शीतज्वर तथा सम्पूर्ण वात रोगों को हरने वाला है। १८-ग्रहण्यादौ रतिलीलारसः जातीकणाहिफेनं च विजयाचूर्णसंयुतम् । बराटं धर्तवीजं च टिवारिधिशोकजं ॥१॥ तुल्याशं निक्षिपेत् खल्वे यामैकं विजयारसेः । मर्दयेत् बटिकां कुर्यात् गुंजामात्रप्रमाणिकाम् ॥२॥ रतिलोलारमा येषः द्विगुंजो हि मधुप्लुतम् । भक्षयेद्वीथैरोधश्च मधुराहारसंयुतः ॥३॥ प्रहगयाश्चातिसारस्य वातरोगविनाशनः । सर्वोत्तमरसश्चासौ पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥ टीका-जायपत्री, पीपल, अफीम, भांग, तथा कौड़ी की भस्म, शुद्ध धतूरे के बीज़, छोटी इलायची, समुद्रशोष, इन सब को बराबर बराबर ले एक पहर तक भांग के रस से घोंटकर एक एक रत्ती के बराबर गोली बना कर २ रत्ती शहद के साथ सेवन करे एवं ऊपर से मोठा भोजन करे तो इससे वीर्य को रुकावट हो तथा संग्रहणी और अतीसार, वानरोग शांत होता है-यह सर्वोत्तम रस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। ___88-वातरोगे बड़वानल रसः सूतहाटकबज्रार्ककांतभस्मानि माक्षिकं । तालं नीलांजनं तुत्थं चाब्धिफेने समांशकम् ॥१॥ पंचानां लवणानां च भागेकं च विमर्दयेत् । बज्रीक्षीरैः दिनकं तु रुद्ध वा च भूधरे पचेत् ॥२॥ उद्धरेत् खल्वमध्यस्थे रसपादं विषं क्षिपेत् । मासकमाकद्रावैः लेहयेद्वडवानलं ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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