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वैद्य-सार
चन्द्रकांतरसो नाम रसश्चन्द्रप्रभाकरः। क्षयव्याधिविनाशश्च सर्वज्वरकुलांतकः ॥६॥ एकमासप्रयोगेण देहचन्द्रप्रभाकरः ।
कथितः व्याधिविध्वंसः पूज्यपादेन निर्मितः ॥१०॥ टीका-१ तोला शुद्ध पारा, दो मास तक खटाई में मर्दन करके निकाल लेवे, फिर खल में डाल कर १॥ तोला शुद्ध गन्धक तथा तूतिया की भस्म, अकोले के बीज, कुणी के बीज, शिलाजीत, कांतलौह की भस्म, ये सब एक एक तोला लेकर ६ मासे सुहागे का फूला तथा कुटकी, और शुद्ध विषनाग लेवे, और कौड़ी की भस्म, कृष्णांजन शुद्ध दोनों मिला कर २० तोला लेवे तथा तीन तोला मिसरी लेवे, इस प्रकार ऊपर कहे हुये परिमाण से सब औषधियों को लेकर शुभ मूहुर्त में, शुद्ध नक्षत्र में खल में डाल कर चांगेरी के रस से ३ पहर जंबीरी नीबू के रस से २ दिन मर्दन करे और ८ हाथ प्रमाण गहरे गड्ढे में तुषा की अग्नि से पांच देवे। इसी प्रकार जंबीरी नीबू के रस में घोंट कर पाठ पुट देवे तथा एक महागज पुट देवे । इस प्रकार जब भस्म हो जाय तब वह भस्म तथा उसके बराबर शुद्ध गन्धक लेवे, एवं गंधक से अाधो काली मिर्च का चूर्ण
और काली मिर्च के चूर्ण से प्राधा पीपल का चूर्ण तथा पीपल से आधा सोंठ का चूर्ण लेकर सब को एकत्रित करके तीन तीन मासा पान का रस तथा शहद के साथ सेवन करे। विषमज्वर में भोजन नहीं करना यहो पथ्य है। यह चन्द्रकांत नाम का रस चन्द्रमा के समान कांति को देनेवाला तथा क्षय रूप व्याधि को नाश करनेवाला तथ सम्पूर्ण ज्वरों को नाश करनेवाला एक माह तक सेवन करने से शरीर को कांति को कपूर के समान करनेवाला और अनेक व्याधि को नाश करनेवाला है। यह चन्द्रकांतरस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है।
७६-मूत्रकृच्छादौ बंगेश्वररस: रसवंगं सममादाय (१) द्वयोः कृत्वा च मेलनं । कुमारीरससंयुक्त दिनमेकं च मर्दयेत् ॥ १॥ त्रिफलाकषाय-संयुक्त त्रिदिनं मर्दयेत्तथा । बालुकायंत्रयोगेन क्रमवृद्धन वहिना ॥२॥ मृदुमध्यदीप्तज्वालेन पर्पटी-यंत्रपाविता। अश्वगंधामृताविश्वमोचारसशतावरी ॥३॥
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