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________________ . वैद्य सार मालिकेररसेनेव दद्याल सशर्करें। पथ्यं च लाजसंसिद्ध शमयेगदान ज्वरान् ॥३॥ रक्तपित्ताम्लपित्तं च सोमं पागडंच कामलां । पूज्यपादेन कथितः रस चन्द्र कलाधरः ॥४॥ टीका-शुद्ध खपरिया, शुद्ध गंधक, तामे की भस्म, काशीस की भस्म, शीसे की भस्म, चंग की भस्म, शुद्ध शिलाजीत, मोलहटी, छोटी इलायची, लजनी के बीज ये सब औषधियां बराबर बराबर लेवे और इन सब को एकत्रित करके नारियल, कूष्मांड (पेठे), केले के तथा गन्ने के जल से पञ्च वल्कल वृक्ष (बड़, ऊमर, पीपल, पाकर और कठऊमर ) इनके काढ़े से सब मिला कर ३२ भावना देवे और सुखा कर रख लेवे। इसको नारियल के पानी के साथ ३ रत्ती चीनी मिला कर देने से यह रस पिपासा आदि ज्वर बीमारियों को, रक्तपित्त, अम्लपित्त, सोमरोग, और पीलिया आदि गरमी के रोगों को शान्त करता है। धान को खील का पथ्य देना चाहिये। . ७५--विषमज्वरे चन्द्रकांतरमः कर्ष शुद्धरसत्वस्य द्विमासे चालविद्रुते । निक्षिपेन्मदयेत्खल्वे पण्णिष्कं शुद्धगंधकं ॥१॥ तुत्थांकोलकुणीबीजं शिलातालं चतुश्चतुः। तत्समं मृतलौहस्य निष्कौ द्वौ टंकणस्य च ॥२॥ तत्समं कुटकीनीलं बराटांजनविशति । निष्कत्रयं सितं योज्यं सर्व चोक्तमनुक्रमात् ॥३॥ शुभक्षणे शुभदिने खल्बमध्ये विमर्दयेत् । चांगेरीभिश्च यामांस्त्रीन् जंबोराम्लैः दिनद्वयम् ॥४॥ पुटं हस्तप्रमाणं तु वसुसंज्ञे तुषाग्निना। जंबोरेश्च द्रवेरेव पिष्ट्वा-पिष्ट्वा पचेत्पुटे ॥५॥ ततो वनोत्पलै रेष देयं गजपुटं महत् । आदाय श्लक्ष्णचूर्ण तु चूर्णीशं शुद्धगंधक ॥६॥ तदर्धमरिचं ग्राह्य तदर्धा पिप्पली मता। तदर्धनागरो 'ग्राह्यः एकीकृत्य निमासकं ॥ लेहयेन्माक्षिकैः साधं नागवल्लीदलस्थितं । पथ्योऽस्ति याममात्रं तु चाभुक्ति विषमज्वरे ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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