SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैद्य-सार एक माह तक सेवन करे, तो सब प्रकार के श्वासकास नष्ट होते हैं । यह योग सर्वश्रेष्ठ है - पूज्यपाद स्वामी ने कहा है । ६६ - कुष्ठरोगे मेदिनीसाररस: पलक्षयं मृतं लौहं मृतं शुल्यं पलत्रयं । भृंगराजाम्बुगोमूत्रत्रिफलाक्का थितैः पृथक् ॥ १ ॥ पुटे त्रिवारं यत्नेन तस्मिन्नेव परिक्षिपेत् । बीजपूररसस्यापि क्वाथे यामचतुष्टयम् ॥२॥ पुनश्च तुल्यं गंधेन पुदामां विशंति दहेत् । पलमात्र मृतं सूतं रुद्रांशममृतं तथा ॥३॥ कटुनयं समं सर्वैः पिष्टवा सम्यग्विदापयेत् । सोऽयं मेदिनीसारो नाम्ना च परिकीर्तितः ॥४॥ सेवितो वल्लमानेन घृतं त्रिकुटान्वितम् । हंत सर्वाणि कुष्ठानि चित्राणि विविधानि च ॥५॥ गुल्मप्लीहामयं हिक्कां शूलरोगमनेकधा । उदावर्ते महावातं कफमन्दानलं तथा ॥ ६ ॥ गलग्रहं महोम्मादं कर्णनादामदं तथा । सर्पादिकं विषं घोरं वृणं लूताभगंदरं ॥७॥ विद्रधिं चांडवृद्धिं च शिरस्तों च नाशयेत् । पूज्यपादप्रयुक्तोऽयं मेदिनीरस उत्तमः ॥८॥ तामे की भस्म, इन दोनों को टीका - तीन पल कांत लौह की भस्म, तथा तीन पल read करके भंगरा के रस, गोमूत्र एवं त्रिफला के काढ़ से अलग अलग भावना देकर पुट देवे तथा बीजौरा नीबू के रस से चार पहर तक घोंट कर सुखा लेवे, तब उसी रस के बराबर शुद्ध गन्धक डाल कर घोंट कर पुट देवे । इस प्रकार बिजौरा के रस की २० पुट देवे तथा उसमें १ पल रससिन्दूर तथा उस चूर्णा से ११ वां हिस्सा शुद्ध विषनाग और त्रिकटु का चूर्ण सब के बराबर ले कर सब को उसी तेयार हुये रस में मिलाकर घोंटे, बस यह मेदिनी सार रस तैयार हो गया समझें । इसको तीन २ रती की मात्रा से घी तथा त्रिकटु चूर्ण के साथ खाने से अनेक प्रकार के कुष्ठ रोग दूर होते हैं। अनुपान - विशेष से गुल्म, लोहा, हिचकी, शूलरोग, उदावर्त, महावात, कफजन्य व्याधि, मन्दाग्नि, गले के रोग, उन्माद, कर्णरोग तथा सर्पादिक के विष की पीड़ा, भय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy