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वैद्य-सार
कटोरे के भीतर लपेट देखे और उस वर्तन को एक बड़ी हंडी में जिसमें सात कपडमिट्टी की गयी हो नीचे को मुख कर देवे भोर उस हंडी में बालू भर तथा बीच से पांच जलाकर तामे की कटोरी के ऊपर जो रेत है उसपर धान रख देवे। जब पांच लगाते लगाते थे धाग्य के कण चिटककर फट जावे तब जाने कि रस सिद्ध हो गया। जब हा हो जाय, तब निकाल और घोंट कर रख लेवे। वहाएक रत्ती रस दो रत्ती काली मिर्च के साथ सेवन करे तो इससे बातज्वर तथा सर्व प्रकार के ज्वर शांत हो ।
___५६--भगंदरे रसादियोगः
रसगंधकसिन्धूत्यतुत्थनागासजीरकाः ।
. तितकोशातकी-सारं पिष्ट्वा प्रन्ति भगंदरं ॥१॥ ____टोका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, सेंधा नमक, तूतिया भस्म, शीशा भस्म, ये सब एकत्रित कर के सफेद जीरा तथा कड़वी तुरई के सार के साथ मलहम बनाकर भगंदर पर लेप करे तो भगंदर शान्त होता है।
५७-सर्वरोगे प्रतापलंकेश्वररसः टंकणं सितगुंजा च गंधकं शुल्ब भस्म च । अयस कुष्ठमंजिष्ठं पिप्पली च निशाद्वयम् ॥१॥ संचूर्ण्य सूतकं तुल्यं मातुलुंगेन प्रमर्दितम् । भष्टादशविधं कुष्ठं भृशं हंति रसोत्तमः ॥२॥ लंकेश्वरो यथा सत्वलोकानां भयकारकः।।
प्रतापलंकेश्वरश्चासौ योगोऽयं सर्वरोगहा ॥३॥ टीका-सुहागे का फूला, शुद्ध सफेद गुंजा, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, कांत लौह भस्म, कूट मीठा, मंजीठ, पीपल, हल्दी, दारु हल्दी, शुद्ध पारा, इन सब को लेकर पहिले पारे गंधक की कजली बनावे, पश्चात् सब चीजों को मिला कर विजोरा नीबू के रस से मर्दन कर के एक एक रत्ती की गोली बांध कर इसे सेवन करे तो अट्ठारह प्रकार का कोढ़ दूर होवे। यह प्रताप लंकेरखर रस प्राणियों का उपकारक है।
जिस प्रकार लंकेश्वर (रावण ) बड़ा पराक्रमी वीर था उसी प्रकार यह प्रताप लंकेश्वर सर्व रोगों को जीतने वाला है।
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