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________________ २० वैद्य-सार २६ - द्वितीय इच्छाभेदिरसः व्योषं गंधं सुतकं टंकणं च तेषां तुल्यं तिन्तडीबीजमेतत् । खल्वे यामं मर्दयेन्नागवल्लीपर्णेनैवंवल्लमात्रप्रवृत्तिः ॥ इच्छाभेदिं दापयेचाथ सेव्यं तांबूलांते तोयपानं यथेच्छं । यावत्कुर्याद् रेचनं तावदेव शूलेषदावर्तपांडूदरेषु ॥१॥ टीका - सोंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध पारा, सुहागा इन सबको बराबर बराबर और सबके बराबर तिन्तड़ीक के बीज ले I खरल में एक प्रहर तक पान के स्वरस में घोंट कर तीन तीन रत्ती के प्रमाण से देवे तथा ऊपर से एक पान का वीड़ा खावे पीना होय पीवे इससे उत्तम विरेचन हो जाता है तथा सर्व प्रकार उदर रोग शान्त हो जाते है । । के मोट- जितने बार दस्त लेना होय उतने बार पान का बीड़ा खाकर पानी पीवे । पश्चात् जितना पानी शूल उदावर्त, पांडु २७ - श्वासकासादौ गजसिंहरसः रसलोहं शुल्वभस्म वत्सनाभं च गंधकं । तालीसं चित्रमूलं च पला मुस्ता च ग्रन्थिकं ॥ १॥ त्रिकटु त्रिफलायुक्त' जैपालं तु विडंगकम् । सर्वसाम्यं विचूण्यैव शृगवेरद्रवैर्युतम् ॥२॥ चणप्रमाणवाटिकां भक्षयेद्गुडमिश्रिताम् । श्वासकासक्षयं गुल्मप्रमेहं तृड्जरागदम् ॥३॥ वातमूलादिरोगाणि हंति सत्यं न संशयः । ग्रहणीं पांडु शुलं च गुदकीलं गूढगर्भकम् ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गजसिंहरसो नाम पूज्यपादेन भाषितः । टीका- शुद्ध पारा, लोह भस्म, ताम्रभस्म, शुद्ध विष, शुद्ध गंधक, तालीस पत्र, चित्रक, छोटी इलायची, नागरमोथा, पीपरामूल, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेरा, आंवला, शुद्ध जमालगोटा, वायविडंग ये सब औषधियां बराबर २ लेकर अदरख के रस के साथ घोंट कर चना के बराबर गोली बनाबे तथा पुराने गुड़ के साथ एक एक गोली प्रातःकाल और सायंकाल सेवन करे तो श्वांस, खाँसी, क्षय, गुल्म, प्रमेह, तृषा, ग्रहणी, शूल, पांडु, गुदकील (बवासीर का भेद) मूढ़ गर्भ तथा अनेक प्रकार के बातरोग नाश हो जाते हैं इसमें कोई संशय नहीं है, ऐसा पूज्यपाद स्वामी ने कहा है । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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