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वैद्य-सार
तथा प्यास लगने पर कई बार पानी पीवे इससे रेचन होता है। यह दवा ज्वर, गुल्म, सूजन, शूल, उदर रोग, भ्रम रोग, पांडु, कुष्ट, अग्निमांद्य-कफ, पित्त और बात इन सब रोगों का नाश करनेवाला है।
२४-विबंधे विरेचकतिक्तकोशातकीयोगः तिक्तकोशातकीवीर्ज तिन्तडीबीजसंयुतम् । पातालयंत्रमार्गेण तैलं तत्तिक्ततुंबके ॥१॥ सार्धे सषीजे मासार्ध क्षिपेत् सिद्ध भवेत्ततः। तेन पादप्रलेपेन नाभिलेपेन वा भवेत् ॥२॥ आमं विरेचयत्याशु वान्तौ तु हृदयं पुनः ।
लेपयेत् क्षालयेन्निम्बवारिणा स्तंभनं भवेत् ॥३॥ टीका-कड़वी तुरई के बीज, तिन्तडीक के बीज, इन दोनों को बराबर बराबर लेकर पाताल यंत्र के द्वारा उनका तेल निकाले और उस तैल को कड़वी तुमरियाबीजसहित आधी काट कर उसमें भर कर १५ दिन तक रखे तो यह तैलसिद्धि हो एवं फिर उसको निकाल कर काम में लावे। उस तैल को पैरों में लगाने से तथा नाभी पर लेप करने से आम दोष का विरेचन होता है, यदि बमन हो जाय तो हृदय पर लेप करे और नीम की पत्ती के ठंढे पानी से प्रक्षालन करे तो बमन शान्त हो जाता है।
२५–विबंधे प्रथम इच्छाभेदिरसः जैपालरसगंधांश्च स्नुहीतीरेण मर्दयेत् । विश्वाहरीतकी शृङ्गबेरद्रावेण संयुतः ॥१॥ माषमानं ददेश्चैव इच्छाभेदि विरेचनम् ।
यथेष्टं रेचनं भूयात् पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥ टीका-शुद्ध जमालगोटा, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, इन तीनों को लेकर थूहर के दूध से घोंटे और उसमें सोंठ, बड़ी हर्र का बकला अदरख के रस के साथ मर्दन करके रख लेवे उसको एक मासे की मात्रा से देवे तो यथेष्ट इच्छानुकूल विरेचन होवे। ... . ..
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