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( ख ) . चंगुल में फंसा रहता है, अर्धमृतक के समान रहता है। व्यापार, धर्मसाधन, विद्यासाधन आदि कोई भी सांसारिक या धार्मिक उन्नति करनेवाला कार्य वह नहीं कर सकता है।
वैद्यक शास्त्र में रोगों के प्रादुर्भाव के कारण पूर्वजन्मकृत पाप तथा इस जन्म में कुपथ्यादि सेवन बतलाये गये है, यथा :
पूर्वजन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते ।
तच्छातिरौषधैर्दानैः जपहोमवतार्चनैः ॥ अर्थात् पूर्वजन्म के पाप (असातावेदनीय के द्वारा) इस जन्म में रोगरूप में प्रकट होकर कष्ट देते हैं। उनकी शान्ति के लिये औषध, दान, पूजन आदि हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि रोग इस जीव के पापकों का फलस्वरूप है और उससे बचने के लिये मनुष्य को सदैव संयम से रहना चाहिये। जिस प्रकार पूर्वजन्म का संयम, रोग-प्राप्ति से बचाता है, उसी प्रकार इस जन्म का संयम (पथ्यादि) मनुष्यों का रोग नष्ट करने में सहायक होता है। ___ इस जीव के जन्म-मरण की परंपरा अनादि से है। तब यह बात निविवाद कही जा सकती है कि इस जन्म-परंपरा के साथ चलने वाले रोग भी अनादिकाल से हैं और उनको नष्ट करने के उपायों का ज्ञान भी, जो कि आयुर्वेद के नाम से प्रसिद्ध है, जीव को अनादि काल से है। इसी कारण शास्त्रकारों ने आयुर्वेद का लक्षण, जो कि अतिव्याप्ति, अव्याप्ति और असंभव-इन तीन दोषों से रहित है, इस प्रकार बतलाया है :
आयुर्हिताहितं व्याधिनिदानं शमनं तथा विद्यते यत्र विद्वद्भिः स आयुर्वेद उच्यते अनेन पुरुषो यस्मादायुविन्दति वेत्ति च तस्मान्मुनिवरैरेष आयुर्वेद इति स्मृतः ।
अर्थात् जिसमें आयु, उसके हित, अहित, व्याधि तथा उसके कारण तथा उसके शांत करने के उपाय बताये गये हों, उसको आयुर्वेद कहते हैं। जिसके द्वारा मनुष्य आयु को प्राप्त करता है, जिसके द्वारा आयु को कायम रखने के उपायों को जानता है, उसको मुनियों ने आयुर्वेद कहा है। ___ जरा ध्यान दीजिए, कैसा स्पष्ट और व्यापक लक्षण है। संसार की सब चिकित्साप्रणालियों को छान डालिये, सबका तत्त्व निकालिये, ऐसा उत्तम सिद्धांत कहीं पर भी नहीं मिलेगा । सब पद्धतियों में दोष मौजूद हैं। कहीं पर पथ्यापथ्य का विवेचन नहीं, तो कहीं पर उम्र बढ़ानेवाले उपाय नहीं लिखे हैं; कहीं पर रोगों की परीक्षा का तरीका दोषपूर्ण है, तो कहीं पर चिकित्सा ऐसी सुलभ नहीं है, जो अमीर-गरीब, बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष-सबों के लिए उपयोगी हो। सारांश में हमारा प्राचीन आयुर्वेद ही सर्वोपरि और सर्वाङ्गपूण है। बहुतसे व्यक्ति इसको अवैज्ञानिक कहते हैं, और इसकी हँसी उड़ाया करते हैं। लेकिन ज्यों-ज्यों आयुर्वेद का अध्ययन और प्रचार बढ़ता जा रहा है, इसके विरोधी भी इसके हिमायती बनते
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