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वैद्य-सार
टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, लौहभस्म, सुहागा, रासना, वायविडंग, त्रिफला, देवदारु, सोंठ, मिर्च, पीपल, गिलोय, पद्माख, ,चन्दन, शहद. शुद्ध विषनाग ये सब वस्तुएँ बराबर लेवे और सब को एकत्र घोंट कर तीन-तीन रत्ती के प्रमाण से सेवन करे तो श्वांस और खांसी कम होती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
१६६-श्वासे सूर्यावरसः सूतार्ध गंधक मद्य यामाद्ध कन्यकाद्रवैः। द्वयोस्तुल्यं ताम्रपत्रं पूर्णपत्रं च लेपयेत् ॥१॥ दिनक हंडिकामध्ये पश्वमादाय चूर्णयेत् ।
सूर्यावर्तरसो ह्यषः श्वासकासहरः परः ॥२॥ टीका-शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गंधक आधा भाग-इन दोनों को घीकुमारी के रस से आधे पहर तक मईन करे और दोनों के बराबर तामे का पत्र लेकर उस पर लेप करे तथा एक दिन तक हंडी के बीच में रख कर पाक करे। जब पाक हो जावे तब पत्रों पर से निकाल कर चूर्ण कर के अच्छी तरह घोंट लेवे तब यह सूर्यावर्त रस तैयार हुआ समझे। यह श्वास तथा खाँसी को हरनेवाला है।
१७०-हस्तिकर्णतैलम् षोडशपलं च कंदं च विल्यपत्रं पलाष्टकम् । आरनालं चतुःप्रस्थं कषायमवतारयेत् ॥१॥ तैलं च कुडवं चैकं मृदुपाकं भिषग्वरः ।
हस्तिकर्णमिदं नाम्ना सर्वशीतज्वरापहं ॥२॥ टीका–१६ पल कंदविशेष, ८ पल बेल की पत्ती, चार प्रस्थ (१३ छटॉक) कांजी लेकर सब को एकत्रित कर के ४ कुडव पानी में पकावे। जब १ कुडवं बाकी रहे तब उतार कर छान ले और फिर उसमें १ कुडव तेल डाल कर मृदु पाक से पाक करे। तैल मात्र बोकीरहे: तब छान कर रख लेवे। यह तैल सब प्रकार के शीतज्वर को दूर करनेवाला है।
१७१ ---विनोद विद्यापसल । सिन्दूरसागरफलवत्सनागाः ह्यष्टकैकांशमन मेण । जवीरगोक्षीरसुनासिकरमीजासावरजीका ॥१॥
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