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________________ वैद्य-सार १६५-लूताविष-चिकित्सा नरनीरेण साक्षी पिष्ट्वा लेपं तु कारयेत् । असाध्यां नाशयेल्लूतां त्रिदोषोत्थां मुनेर्वचः ॥१॥ टोका-मनुष्य के मूत्र से साक्षी को पीस कर लेप करने से असाध्य भी मकरी का विष शांत हो जाता है। चाहे त्रिदोष भी हो गया हो तो भी शांत हो जाता है। नोट-मकरी जब शरीर पर फिर जाती है और वह अपना जहर शरीर पर छोड़ती है तब कोदों के बराबर फुसी सी हो जाती है, ये पकती नहीं है और बड़ा कष्ट होता है। इस पर उक्त प्रयोग करने से शीघ्र ही शांत हो जाता है । १६६-पित्तदाहे धान्यादियोगः धान्यकं मधुक चैलां समभागेन शर्करां। नवनीतं पयः पीत्वा पैत्त-दाह-विनाशनम् ॥२॥ टीका-यनिया, मुलहठी, छोटी इलायची ये तीनों बराबर लेवे और सबके बराबर शर्करा ले एवं मक्खन में मिला कर खाये तथा ऊपर से दूध को पीवे तो पित्त-संबंधी दाह कम हो जाता है। १६७-दूसरा योग नवनीतं क्षीरसंयुक्तं शर्करा-पिप्पलीयुतं । पित्तदाहं च तापं च चातुर्थ-विनाशयेत् ॥१॥ टीका-मक्खन, शक्कर, पीपल इन सब को मिला कर दूध के साथ पीने से पित्तज, दाह एवं चौथिया ज्वर शांत हो जाता है। १६८-श्वासे पारदादियोगः .पारदं गंधकं शुद्ध मृतं लौहं च टंकणं । रास्ना विडंगं त्रिफलां देवदारु कटुवयम् ॥१॥ अमृता पद्मकं क्षौद्रं विषं तुल्यांशचूर्णितम् ।। त्रिगुंजं श्वोसकासार्थी सेवयेन्नात्र संशयः ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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