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________________ 116४ वैद्य-सार पिष्ट्वा गुंजामितां वटिकां गोघृतेन निषेवयेत्।। विरेचनकरी शीघ्र हृदुनं नाशयेत्परं ॥३॥ शूलं गुल्मं च शोथं च पांडुप्लीहां च नाशयेत् । चितामणिः गुटिश्चासौ पूज्यपादेन भाषिता ॥४॥ टीका-काली मिर्च, पीपल, सोंठ, बड़ी हर्र का बकला, आँवला, काला नमक ये सब बराबर लेवे तथा सुहागा दो भाग, शुद्ध शिंगरफ छः भाग एवं सब के बराबर शुद्ध जमालगोटा ले सबको एकत्रित कर जंबीरी नींबू के रस से दो दिन तक मर्दन करे, जब खूब पिस जावे तब एक-एक रत्ती की गोली बांध लेवे। बलाबल के अनुसार गाय के घी के साथ सेवन करावे तो शीघ्र ही दस्त लाता है तथा हृदय-रोग को नाश करता है। और शूलरोग, गुल्मरोग, शोथरोग, पांडुरोग, प्लीहा रोग को नाश करता है । यह चिंतामणि नाम की गोली पूज्यपाद स्वामी की कही हुई बहुत ही योग्य है। १५६-वाजीकरणे रतिलीलारसः रसो नागश्च लौहं व भागेकं चाभ्रकस्य च। त्रिभागं स्वर्णवीजानि विजया मधुयष्टिका ॥१॥ शाल्मली नागवल्ली च समभागान्विता तथा । मधुघृतान्विता सेव्या वल्लयुग्मस्य मात्रया ॥२॥ संतोषयेश्च बहुकांताः पुष्पधन्वबलान्वितः। रतिलीलारसश्चासौ पूज्यपादेन भाषितः ॥३॥ टोका-शुद्ध पारा, शीसे की भस्म, लोह भस्म तथा अभ्रक भस्म ये सब एक-एक भाग तथा धतूरे के शुद्ध बीज तीन भाग, भांग, मुलहठी, सेमल की जड़, नागरवेल (पान) ये भी समान भाग लेकर एकत्रित कर गोली बांध ले। योग्य ६ रत्ती की मात्रा से मधु तथा घी के साथ देवे तो पुरुष की इतनी ताकत बढ़े कि सैकड़ों स्त्रियों को संतोष कर सके तथा कामदेव के समान बहुत बलवान होवे। यह रतिलीला-रस पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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