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________________ वैद्य-सार १२७ -ज्वरादौ कलाधररसः सुरसं गंधर्क चाभ्र काशीसं शीसमेव च। बंग शिलाजतु यष्टि चैला लामजकं समम् ॥१॥ नालिकेरैश्च कूष्माण्डैः रंभाजेचरसेन च । पंचवल्कलस्वरसेन (?) द्वात्रिंशद्भावना तथा ॥२॥ नालिकेररसेनैव दद्याद्वल्लं सशर्करं। पथ्ये संसिद्धलाजं हि शमयेत्तृटगदान ज्वरान् ॥३॥ रक्तपित्ताम्लपित्तं च सोमं पाण्डं च कामलां । पूज्यपादेन कथितः रसः चन्द्रकलाधरः ॥४॥ · टोका-शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, शुद्ध कसीस, नागभस्म, बंगभस्म, शुद्ध शिलाजीत, मुलहठी, छोरी इलायची, मंजीठ (एक सुगंधित तृण) ये सब बराबर लेकर नारियल के दूध से, कूष्मांड के स्वरस से, केला के कद के स्वरस से, ईख के स्वरस से तथा पंच वल्कल (पीपल, बर, ऊमर, पाकर, कठऊपर) के काढ़े से अलग अलग बत्तीसबत्तीस भावना देवे और सुखाकर गोली बांधे। इस गोली को नारियल के दूध के साथ तीन-तीन रत्ती की मात्रा से मिश्री के साथ देवे तथा सिद्ध की गयी (पकायी हुई) लाई को पथ्य में देवे। इसके सेवन करने से तृषा एवं तृषा से उत्पन्न होनेवाले ज्वरों को लाभ होता है तथा रक्तपित्त, अम्लपित्त, सोमरोग (सफेद प्रदर) पांडु, कामला इन रोगों को भी लाभ होता है। यह रस श्रीपूज्यपाद स्वामी ने कहा है। . १२८-मन्दाग्नी उदयमार्तण्डरसः जयपालं विषटंकणं च दरदं त्रैलोक्यनेत्रांबुधि। मर्यश्चार्द्र रसैद्विगुंजवटिका कार्या चतुर्बुद्धिभिः ॥१॥ मंदाग्निं विगुणानिलं च गुल्मं श्वासं च कासं क्षयं । प्रोक्तः शूलविनाशकश्च मुनिना मार्तण्डनामा रसः॥२॥ टीका शुद्ध जमालगोटा ३ भाग, शुद्ध विषनाग २ भाग, टंकणक्षार २ भाग, शुद्ध सिंगरफ ४ भाग इन सबको एकत्रित करके अदरख के रस के साथ मर्दन करे तथा दो-दो रत्ती की गोली बनावे और इसको बुद्धिमान् अनुपान-विशेष से बलाबल के अनुसार देवे तो इससे मंदाग्नि, वायु की विगुणता तथा गुल्म, श्वास, कास, क्षय, शूल इन सब का नाश होता है, यह पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035294
Book TitleVaidyasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyandhar Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year1942
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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