SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : ५२ : तत्त्ववेता हिमाचलसूरीश्वरजी महाराज, पंन्यासजी श्री कमलविजयजी महाराज और प्रवर्तक श्री गुमानविजयजी महाराज । इनके शिष्य प्रशिष्य आदि तो काफी संख्या में है। इसी तरह साध्वीजी की संख्या तो अनुमानतः सौ से अधिक है। उपसंहार संसार में समय समय पर महापुरुषों का इस पृथ्वी पर जन्म होता ही रहता है। जो अनादि काल से ही चला आ रहा है । जब जब मनुष्य अपनी सद्भावनाओं को छोड कर कुपथगामी होते है तब तब प्रकृति के नियमानुसार उन्हें एक न एक अवश्य ही सत्पुरुष महात्मा आदि के रूप में मिलते ही है, पर चतुर लोग तो उन महापुरुषों से अवश्य ही लाभ उठाकर अपना जीवन सफल बना लेते है । पर भाग्यानुसार कई मनुष्य ऐसे है जो अपना मानवजीवन निरर्थक गुमा कर आगामी जीवन को भी अंधकारमय बना जाते है । हमें प्रत्येक महापुरुष के जीवन से तथा उनके सदुपदेश का सार लेकर उनका पालन करने से सची सुख-शान्ति मिल सकती है । व हमारा किसी पुरुष की जीवनी पढना तभी सफल हो सकती है जब कि हम उससे कुछ न कुछ सीख कर अपने जीवन को भी उसी साँचे में ढाल कर मानवसेवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy