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________________ विशेष विवरण समय समय का काम करता रहता है । आयुष्य की कौन कह सकता है कि कब दीप में से तेल खत्म हो जायगा ? पंन्यासजी महाराज की भी यही हालात थी । सारा संघ को एकत्रित करके आपने कहा : ४९ : महानुभावो ! इस कालचक्र के मुख से कौन बच पाया है ? संसार में जिसने जन्म लिया है उसे एक बार मृत्यु को भेटना ही होगा । इस में शोक करने जैसी कोई बात नहीं है । आप लोग मेरे दोनों शिष्य बहुत छोटे है और विदेश भीं घूमे नहीं है, और इतना जानपना भी नहीं है इस लिये मेरे स्थान पर इन्हें समझ कर खूब सेवा - भक्ति करें, ताकि इनकी आत्मा को दुःख न हो और ठीक संयम पालन करते हुए अपना आत्मकल्याण कर सकें। इस पर संघने तथास्तु तथास्तु शब्दों की जडी लगा दी । पीछे पं. हिम्मतविजयजी को कहा कि भाई ! यह गुमान छोटा है, तेरे भरोसे है । दोनों हिलमिल कर सम्प। पूर्वक रहना । इस वीर की गद्दी को मैं तुम्हें सौंपता हूं । तूं इसे विशेष शोभायमान करना । जत और मत में सदाके लिये सावधान रहना । जहाँ भी तूं जायगा वहाँ तेरी विजय होगी । इस पर हिम्मतविजयजीने गुरुजी के चरणों में पड़ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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