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________________ योग और गुरुदेव का स्वर्ग कठिनाईयों का आप पर तनिक भी असर न हुआ । आप तो निर्भीक होकर अपने कर्त्तव्य में आरूढ रहें । __ शुभ कार्य में बाधायें विशेष कर आती ही है। इसी प्रकार इस योगाभ्यास के कठिन समय में श्री हितविजयजी म. को भी आफतों ने आधेरा । अभी तो योग प्रारम्भ किये पूरे महानिशिथ तक भी नहीं पहुंच पाये थे कि अचानक आपके गुरुदेव को बिमारीने घेर लिया। एक और तो कठिन योग की क्रिया, दूसरी कठिन तपस्या, और इसके साथ साथ गुरुदेव की बिमारी काल की सेवा एक पूरे कसौटी रूप में परिणत हो गई । साधारण व्यक्ति तो क्या पर अच्छे अच्छे शक्तिशाली भी ऐसे विकट समय में अपने धैर्य को खो बैठते है । पर मुनिराज श्री हितविजयजी पर इसका तनीक भी असर नहीं पडा। ज्या ज्या समय बढता गया त्या त्या पंन्यासजी महाराज अधिक बिमार होते गये । हितविजयजी के समक्ष भी इस बिमारी की समस्या अधिक बढती गई । अब तो वे भी अपने गुरुदेव की बिमारी के कारण चिंतित रहने लगे। आपने तो सेवा में किसी तरह कसर न होने दी, पर भावी को मिथ्या कौन कर सकता है ? होनहार होकर ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035285
Book TitleTattvavetta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPukhraj Sharma
PublisherHit Satka Gyanmandir
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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