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________________ [१६] सर्व नर सुरचक्री विरमति, ब्रह्मरूपी इंद्र हारपति, ब्रह्मा विष्णुमूर्ति विलया जाति, आपुलीया यता ॥९८॥ _ विष्णु रुद्री व्यखस्ते, रुद्र शिवि मागुते, शिव शून्या परोते, शुद्ध बुद्ध ॥ ९९ ॥ ऐसि सूर देहस्थिति, तये काए राहाति, म्हणौनु शरीरसिद्धिभ्रांति, सांडि बापा ॥ ७० ॥ किंबहुना सर्व सांडिजाणे, ऐसें अभेद अंत:करणे, स्वयं शून्य निर्गुणे, महाबोधे ॥१॥ __सांडिं पापपुण्य कुळकथा, होए पद पिंडिं मुक्ता, रूपरूपातीत पाहातां, निःसंशय ॥ २॥ ___ सांडि वर्णभेदु, शुचि शंका बंधु, विश्वरूपिं सानंदु, तुंचि होसि ॥ ३ ॥ ___ सांडि निंदा स्तुति कडवसा, मानाभिरानु काइसा, सुख दुःखीं निराशा, होइ पुत्रा ॥ ४ ॥ त्यजिं आस्ति नास्तिक वादु, भ्रमु वोषधीचा बंधु, अविलिल वाचा प्रबंधु, ज्ञान भ्रंशु॥ ५॥ त्यजिं रिद्धि सिद्धिचि आवडि, स्वर्ग भोगादि फळे थोकडिं, आत्मतत्वापासुनि बापुडि, हीणें देखों ॥ ६ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035284
Book TitleMarathi - Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChangdev Vateshwar
PublisherPrachya Granth Sangrahalay
Publication Year1936
Total Pages112
LanguageSanskrit, Marathi
ClassificationBook_Other
File Size7 MB
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