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त्याग. त्यजिं आधार स्वाधिष्ठान, मणिपुर अनुहात ज्ञान, विशुद्धाज्ञा साधन, षटुचक्रांचें ॥ ९० ॥
त्यजिं मूळबंधु वायु साधन, खंडज्ञान लंबिकाकरण, अनहात श्रवण, नको भावुं ॥ ९१ ॥
त्यजि अधोर्ध्व मध्यस्थान, आसन मुद्रा लक्ष ध्यान, अजपामंत्र साधन, अवस्था त्रय ॥ ९२ ॥
त्यजं वादु दंडि दारुण, विज्ञान विद्या सर्वज्ञपण, कळा कौशल पांडित्यपण, सांडोनि घाली ॥ ९३॥
त्यजं धातु धातुर्वाद, रस रसायण उपाधि, विवर मुख्य करुनि समस्त विषयबुद्धि, झर्णे सेविं ॥ ९४ ॥
त्यजी तिर्थदेश भ्रमण गिरि गहर कर्दळीवन, निरोपद्रव स्थानीं रहण, प्रारंभी तुं ॥ ९५ ॥
त्या पितृगोत्र समस्त, जीव भाव सांडौनि होये निभ्रांत, देहसिद्धि न लगे सर्वथा, नाशिवंत हें ॥९६॥
ऐसें ही देह साध्य कीजेल, तरि आरिख एक बोलिजैल, ब्रह्मादिकीं देह त्याजजैल, गणना अंतीं ॥९७॥
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