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शुभचंद्रकी प्रशस्तियोंमें जगह २ शाकवाटपुरके उल्लेखसे यह बात जानी जाती है कि शुभचंद्र सागवाड़ाकी गद्दीके भट्टारक थे। यह गद्दी सकलकार्तिके बाद इडरकी गद्दीसे जुदी हुई है और तबसे उसके जुदे २ भट्टारक होते आये हैं।
पांडवपुराणकी प्रशस्तिमेंश्रीमाद्वक्रमभूपतेर्दिकहते स्पष्टाष्टसंख्ये शते रम्येऽष्टाधिकवत्सरे सुखकरे भाद्रे द्वितीयातिथौ श्रीमद्वाग्वरनितीदमतुले श्रीशाकवाटे पुरे
श्रीमच्छीपुरुषाभिधे विरचितं स्थयात्पुराणं चिरं ॥८६॥
इस श्लोकसे यह बात बतलाई गई है कि यह पांडवपुराण ( शाकवाट ) सागवाड़ामें विक्रम संवत् सोलहसौ आठ १६०८ भादों द्वितीया के दिन बनाया गया है।
इससे यह साफ मालूम पड़ता है कि भट्टारक शुभचंद्र विक्रमकी सत्रहवीं शताब्दिमें हुए हैं।
___पांडवपुराणकी प्रशस्तिमें भट्टारक शुभचंद्रने अपने बनाये ग्रंथोंके नाम दिये हैं वे ये हैं-- ___चंद्रप्रभचरित्र पद्मनाभचरित्र प्रद्युम्नचरित्र जीवंधरचरित्र चंदनाकथा नांदीश्वरीकथा पं. आशाधरकृत आचार शास्त्रकी टीका, तीसचौवीसीविधान सद्वृत्तसिद्धपूजा ( सिद्ध चकपूजा) सारस्वतयंत्रपूजा चिंतामणीतंत्र कर्मदहनपाठ | गषधरवलयपूजन पार्श्वनाथकाव्यकी पंजिका पल्यव्रताद्यापन
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