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________________ ( ३७१ ) इसमें क्रिया कोंन हैं ? कोई कहने लगी, बता माता२आनंदयंतु लोकानां मनांसि वचनोत्करैः। मातः कर्तृपदं गुप्तं वदभ्रूण विभावतः ॥ इसमें ३कर्ता कौन है ? कोई कहने लगी, बता माता४सुधीमनयसंपन्ना लभंते किंनराः कचित् । स्वकर्मवशगा भीमे भवे विक्षिप्त मानसाः॥ इसमें कर्म क्या है? कोई २ कुमारी कहने लगी-माता ! तुम समस्या पूरण करनेमें बड़ी चतुर हो। इस समय तुम गर्भवती भी हो मुनिश्यायते सदा इस समस्याकी पूर्ति करो। माताने जवाब दिया ५नरार्थ लोकयत्येव गृहीत्वार्थ विमुंचति । धत्ते नाभिविकारं च मुनिबेश्यायते सदा ॥ १ इसमें दो अवखंडने धातुका लोटके मध्यम पुरुषका एक बचन 'द्य' क्रियापद है। २-लोगोंके मन, वचनोंसे आनंदको प्राप्त हों । हे माता इसमें कर्तृपद गुप्त है गर्भके प्रभावसे आप कहैं । ३--इस श्लोकमें मनासि कर्ता है। ४ विक्षेप चित्तयुक्त, कोंके वशीभूत और नीतिरहित मनुष्य क्या संसारमें कहीं उत्तम बुद्धिके धारक हो सकते हैं ? कदापि नहिं । इसमें सुपी कर्ता है। ५ जो मुनि परधनकी ओर देखता रहता है, धन लेकर धनीको छोड़ देता है और नाभिविकारखुक्त होता है वह मुनि वेश्याके समान होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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