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________________ ( ३६० ) | जैसा दुःख होता है उससे भी अधिक जीवोंको नरकमें दुःख | भोगना पड़ता है । संसारमें जो स्त्रियाँ दूसरे मनुष्योंकी आभिलाषा करती हैं नियमसे उन्हें पूर्वपापोदयसे लोहेकी तप्त पुतलियोंसे चिपकाया जाता हैं । जो मनुष्य परस्त्रियों के साथ विषय भोगते हैं उन्हें नरकमें स्त्रीके आकारकी तप्त पुतलियों के साथ मालिंगन कराया जाता है । जो मूर्ख यहां शराब गटकते हैं हाहाकार करते हुए भी उन मनुष्यों को जवरन लोह पिघलाकर पिलाया जाता है। जो यहां विना छने जलमें स्नान करते हैं नारकी उन्हें तप्ततेलकी भरी कढ़ाइयों में जवरन स्नान कराते हैं । जो पापी मोहवश यहां परस्त्रियोंके स्तनमर्दन करते हैं नारकी उन्हें मर्मघाती अनेक शास्त्रोंसे पीड़ा देते हैं। नरकोंमें भनेक नारकी आपसमें लड़ते हैं । अनेक पैने हथियारोंसे और नखोंसे छिन्नभिन्न होते हैं। अनेक अमिमें डालकर मारे नाते हैं। और आपसमें अनेक पीड़ा सहते हैं। नरकमें रातदिन भवनवासी देव भिड़ाते है इसलिये एक नारकी दूसरे नारकीको आपसमें बुरी तरह मारता है । मुष्टियोंसे पीस देता है । इसरीतिसे नारकी सदा पूर्व पापोदयसे नरकोंमें दुःख भोगते रहते हैं। नरकमें जीवितपर्यंत क्षणभर भी सुख नहि मिलता किंतु तीव्र दुःखका ही सामना करना पड़ता है। तिर्यचोंमें भी हमेशह वात टंडी घामका दुःख रहता है । बिचारे तिर्यंचों पर अधिक बोझ लादा जाता है। उन्हें भूखप्याससे वंचित रक्खा जाता है जिससे तियचोंको असह्य वेदना भोगनी पड़ती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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