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________________ ( ३२६ ) I युक्त है । धर्म द्रव्य भी वैसा ही है किन्तु इतना विशेष है कि यह स्थितिमें सहकारी है । आकाश के दो भेद है - एक लोकाकाश, दूसरा अलोकाकाश । लोकाकारों असंख्यात प्रदेशी है । और अलोकाकाश अनंत प्रदेशी है । लोकाकाश सब द्रव्योंको घरके समान अवगाह दान देने में सहायक है । काल द्रव्य भी असंख्यात प्रदेशी एक और द्रव्य लक्षण युक्त है । यह रत्नोंकी राशिके समान लोकाकाशमें व्याप्त है । और समस्त दव्यों के वर्तना परिणाममें कारण है । कर्म वर्गणा आहार वर्गणा आदि भेदसे पुद्गल द्रव्य अनंत प्रकार है । और यह शरीर और इंद्रिय आदिकी रचना सहकारी कारण है । आस्रव दो प्रकार है - द्रव्यासव और भावासव । दोनों ही प्रकारके आस्रवके कारण मिथ्यात्व,अविरति, प्रमाद आदि हैं । जीव विभाव परिणामोंसे बंध होता है । और उसके चार भेद हैं- प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध | आस्रवका रुकना संवर है । संवरके भी दो भेद हैं- द्रव्यसंवर और भावसंवर। और इन दोनों ही प्रकार के संवरोंके कारण गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा आदि हैं। निर्जरा दो प्रकार है - सविपाक निर्जरा और अविपाक निर्जरा । सविपाक निर्जरा साधारण और अविपाक निर्जरा तपके प्रभावसे होती है । द्रव्यमोक्ष और भावमोक्षके भेदसे मोक्ष भी दो प्रकार कहागया है । और समस्त कर्मोंसे रहित हो जाना मोक्ष है । मगधेश ! यदि इन्ही I 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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