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( ३२५ ) असंख्यातवे भाग शरीरके धारक हैं। वनस्पतिकायके जीवोंका उत्कृष्ट शरीर परिमाण तो संख्यातांगुल है और जघन्य अंगुलके असंख्यात भाग है । शुद्धेतर पृथ्वीजीवोंकी आयु बारह हजार वर्षकी है । जलजीवोंकी बाईस हजार वर्षकी है। तेजकायिक जीवों की सात हजार और तीन वर्षकी है । एवं वायुकायिक जीवोंकी तीन हजार और वनस्पतिकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु दश हजार वर्षकी है । विकलेंद्रिय जीव तीन प्रकार हैंदोइंद्रिय, तेइंद्रिय और चौइंद्रिय । संज्ञी और असंज्ञी भेदसे पंचेंद्रिय भी दो प्रकार हैं । पंचेंद्रिय जीव, मनुष्य, देव, तिर्यंच
और नारकी भेदसे भी चार प्रकार है । नारकी सातो नरकमें रहने के कारण सात प्रकार है । तिर्यंचोंके तीन भेद हैं-जलचर, स्थलचर और नभचर । भोगभूमिज और कर्मभूमिज भेदसे मनुष्य दो प्रकारके हैं । जो मनुष्य कर्मभूमिज है वेही मोक्षके अधिकारी हैं। देवभी चार प्रकार हैं-भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक । भवनवासी दश प्रकार है, व्यंतर आठ प्रकार, ज्योतिषी पांच प्रकार और वैमानिक दो प्रकार है । इस प्रकार संक्षेपसे जीवोंका वर्णन कर दिया गया। अब अजीवतत्त्वका वर्णन भी सुनिये___अजीवतत्त्वके पांच भेद हैं-धर्म, अधर्म, आकाश, काल
और पुद्गल । उनमें धर्मद्रव्य असंख्यात प्रदेशी जीव और पुद्गलके गमनमें कारण, एक, अपूर्व और सत्तारूप द्रव्य लक्षण
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