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________________ शायद वे मुझे काट खांय इसलिये मैं नहिं जाना चाहता फिर कभी देखा जायगा । किं तु वह ब्राह्मण परमदयालु था उसे उस पर दया आगई इसलिये उसने अपने प्राणोंसे भी अधिक प्यारी और जिसमें सोना रख छाड़ाथा वह लकड़ी शीघ्र उसे देदी और जानेके लिये प्रेरणाभी की। वस फिरवया था ! वालककी निगाह तो उसलकड़ी पर ही थी । संग भी वह उसी लड़कीकलिये लगाथा इसलिए ज्याही उसके हाथ लकड़ी आई वह हमेशहकलिये ब्राह्मणसे विदा होगया फिर वृद्ध ब्राह्मणकी ओर उसने झांककरभी न देखा । कृपानाथ! आप ही कहैं वृद्ध और परमोपकारी उस ब्राह्मणके साथ क्या उस बालकका वह वर्ताव योग्य था ? मैंने कहा जिनदत्त ! सर्वथा अयोग्य ! उसवालकको कदापि सोम शर्मा ब्राह्मणके साथ वैसा वर्ताव नहिं करना चाहिये था अस्तु अब मैं भी तुम्हें एक अतिशय उत्तम कथा सुनाता हूं तुम ध्यान पूर्वक सुनो धन धान्य उत्तमोत्तम पदार्थोसे व्याप्त इसी पृथ्वीतलमें एक कौशांबी नगरी है। किसीसमय उसनगरीका स्वामी राजा गंधर्वानीक था । राजा गंधर्वानीकके मणि आदि रत्नोंका साफ करनेवाला कोई गारदेव नामका मनुष्यभी उसीनगरीमें निवास करता था। कदाचित वह राजमंदिरसे एक पद्मराग माण साफ करनेकेलिये लाया और उसे आंगनमें रख वह साफही करना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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