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________________ ( २८१ ) कर दिया । राजाकी आज्ञानुसार महावत उसे सिखाने लगा। जब वह सिखानेमें टाल मटोल करता था तब महावत उसे मारे २ अंकुशों के वशमें करता था। इसप्रकार कुछ समय तो वह हाथी वहां रहा। जब उसे अंकुश बहुत दुःख देने लगा तो वह भग कर गंगा के किनारे उसी तपस्वीके पास आगया । ज्योंही तपस्वीने उसे देखा तो उसने भी उसे न रक्खा मारपीट कर वहां से भगा दिया । तपस्वीका ऐसा वर्ताव देख हा को क्रोध आगया एवं उस दुष्टने उस उपकारी तपस्वीको तत्काल चीर कर मार दिया। कृपानाथ ! अब आप ही कहैं परमोपकारी उस तपस्वीके साथ क्या हाथीका वह वर्ताव उत्तम था ? मैंने कहा। जिनदत्त ! वह हाथी बड़ा दुष्ट था। दुष्टने जरा भी अपने उपकारीकी दया न की । देखो जो मनुष्य दूसरेके उपकार को भूलजाते हैं उन्हें अनेक वेदना सहनी पड़ती है। नरकादि गतियां उनके लिए सदा तयार रहती हैं । एवं बुद्धिमान लोग स्वभावसे हिंसक और उपकारीके हिंसकमें उतना ही भेद मानते हैं जितना राई और पर्वत में मानते हैं । मैं तुम्हारी कथा सुन चुका । मैं भी एक दूसरी कथा कहता हूं तुम उसे ध्यान पूर्वक सुनो। इसी पृथ्वीपर एक चम्पापुरी नाम की सर्वोत्तम नगरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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