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________________ ( २४९ ) और उदार हैं । वहांपर कोई मनुष्य जड़ नहीं है यदि जड़ता है तो स्त्रियों के नितंवोंमें है। कृशता भी वहांपर स्त्रियों के कटिभागमें ही है-स्त्रियोंकी वहां कमरही पतली है और कोई कृश नहीं । वहांके पत्थर ही नहीं बोलते चालतेहैं मनुप्य कोई गूंगा नहीं । उसदेशमें कोई किसीका दमन नहीं करता एकमात्र योगीश्वर ही इन्द्रियोंका दमन करते हैं । मलिनभी वहां कोई नहीं रहता एकमात्र मलिनता वहांके तलावोमें है। हाथी आकर वहांके तालावाको गदला करदेते हैं । उसदेशमें निष्कोषता कमलों में ही है सूर्यास्त होनेपर वे ही मुद जातेहैं किन्तु वहां निप्कोषता खजाना न हो यह वात नहीं । लोग उसदेशमें दान आदि उत्तमकार्यों में ईर्षा द्वेष करते हैं। किन्तु इनसे अतिरिक्त और किसी कार्यमें उन्हें ईर्षा द्वेष नहीं ! वहांके लोग उत्तमोत्तम व्यारव्यान सुननेके व्यसनी हैं जूवा आदिका कोई व्यसनी नहीं है । तथा उस देशमें उत्तमोत्तम मुनियोंके ध्यानप्रभावसे सदा बृक्ष फले फूले रहते हैं । योग्य वर्षा हुआ करती है उसके मनोहरवागोंमें सदा कोकिल बोलती रहती है। वहांकी स्त्रियोंसे हथिनी भी मंद गमनकी शिक्षा लेती है । और स्वभावसे वे स्त्रियां लज्जावती एवं पतिभक्ता हैं। इसी मणिवत देशमें एक अतिशय रमणीय दारा नामक नगर है। दारानगरके ऊंचे २ महल सदा चन्द्रमडलको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ____www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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