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________________ ( २४८ ) स्त्रियों के ओठों में ही है । वहां सबलोग सुखी हैं इसलिये कोई किसी से किसी चीज की याचनाभी नहीं करता । यदि याचना का व्यवहार है तो वरकेलिये कन्या और कन्या के लिये वरका ही है । उसदेशमें किसीका विनाशभी नहीं किया जाता । यदि विनाश व्यवहार है तो व्याकरण में क्विप्प्रत्ययमें ही है-किप्रत्ययका ही लोप किया जाता है । वहांके मनुष्य निरपराधी हैं इसलिये वहां कोई किसीका बन्धन नहीं करता यदि बंधन व्यवहार है तो मनोहरशब्द करनेवाले पक्षियों में ही है - वे ही पिंजरा में बंधे रहते हैं ! मणिवत देशमें कोई आलसीभी नजर नहीं आता आलसीपना है तो वहांके मतवाले हाथियों में ही है - वे ही झूमते झूमते मंद गति से चलते हैं । कोई किसीको वहां पर मारने सतानेवालाभी नहीं है । यदि मारता सताता है तो यमराजही है। वहांके निवासियोंको भय किसी से नही है केवल कामी पुरुष अपनी प्राणवल्लभाओंके क्रोध से डरते हैं- -कामियोंको प्रतिक्षण इसवातका डर बना रहता है कहीं यह नाराज न होजाय । उसदेशमें कोई चोर नहीं है यदि चोर का व्यवहार है तो पवन में है वही जहां तहांकी सुगंधि चुरा ले आता है । वहांका कोई मनुष्य जातिपतित नहीं है | यदि पतन व्यवहार है तो वृक्षोंके पत्तों में है वेही पवनके जोरसे जमीनपर गिरते हैं । वृक्षोंके पत्ते छोड़कर उसदेशमें कोई चपल भी नहीं है । किंतु वहांके निवासी सबलोग गम्भीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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