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कर्मोंका नाशकर सिद्ध अवस्थाको भी प्राप्त हो जाते हैं । तथा इसीप्रकार कायगुप्तिका पालन भी अतिकठिन है । शरीरसे सर्वथा निर्मम होकर विरले ही मुनीश्वर कायगाप्तिके पालक होते हैं। तीनों गुत्तियोंके पालक मुनिराज निमल होते हैं। उन्हें तपके प्रभावसे अनेकप्रकारको लब्धियां मिलती हैं। उनकी आत्मा सम्यग्ज्ञानसे सदा भूषित रहती है । एवं वे जैन धर्मके संचालक समझे जाते हैं। ___इसप्रकार मुनिवर धर्मघोष और जिनपालके मुखसे मनोगुप्ति और वचनगुप्तिकी कथा सुन राजा श्रेणिक और रानी चेलनाको अति आनंद मिला । वे दोनों दंपती परम पवित्र दोनों गुप्तिओंकी बारबार प्रशंसा करने लगे। उनके मुखसे समस्तबाधा रहित मुनिमार्गकी एवं केवलिप्रतिपादित श्रुतज्ञान की भी झड़ाझड़ प्रशंसा निकलने लगी। इसप्रकार पद्मनाभ तीर्थकरके भवांतरके जीव महाराज श्रेणिकके चरित्रमें मनोगुप्ति वचनगुप्ति दोनों गुप्तिओंकी कथा
वर्णन करनेवाला दशवां सर्ग समाप्त हुवा
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