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________________ ( २२९ ) होता। कुतर्कसे मनुष्यके सद्विचार कहांतक किनारा नहीं करजाते? ज्योंही महाराजने बौद्धों का लंबा चौडा उपदेश सुना 'पानीके अभावसे जैसा अभिनव वृक्ष कुमला जाता ह' महाराजका जैनधर्मरूपी पौदा कुमला गया । अब उनका चित्त फिर डामाडोल होगया। उनके मनमें फिरसे जैनधर्म एवं जैन मुनिओंकी परीक्षाका विचार आकर सामने ठडुकाने लगा। ___कदाचित् महाराजने जैन मुनिओंकी परीक्षार्थ राजमंदिरमें गुप्तरीतिसे एक गहरा गढा खुदवाया । उसमें कुछ हड्डी चर्म आदि अपवित्र पदार्थ मगाकर रखवादिये । और रानीसे जाकर कहा____ कांते ! अब मैं जैनधर्मका परिपूर्ण भक्त होगया हूं । मेरे समस्तावेचार बौद्धधर्मसे सर्वथा हट गये हैं। कदाचित् भाग्यवश यदि कोई जैनमुनि राजमंदिरसें आहारार्थ आवें तो तू इसपवित्रमंदिरमें आहार देना उनकी भक्ति सेवा सन्मान भी खूब करना रानी चेलना बडी पंडिता थी। महाराजकी यह आकस्मिक वचनभंगी सुन उसै शीघ्र ही इसवातका बोध होगया कि महाराजने जैनमुनिआंकी परीक्षार्थ अवश्य ही कुछ ढोंग रचा है । और महाराजके परिणाम बौद्धधर्मकी और फिर झुकेहुये प्रतीत होते हैं। कुछ दिनके पश्चात् भलेप्रकार ईर्यासमितिके परिपालक, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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