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( २२४ ) डागये। उस दिन भी राजा सुमित्रकी दृष्टि मुनिराज पर न पडी । एवं मुनिराज भी आहारका अंतराय समझ बनकी
ओर चल दिये। ___ मुनिराज वनकी ओर जा रहे थे । उनकी देह आहारके न मिलनसे सर्वथा क्षीण हो चुकी थी-ज्योंही गृहस्थोंकी दृष्टि मुनिराज पर पडी मुनिराजका शरीर अति क्षीण देख उन्हें बहुत दुःख हुवा । वे खुले शब्दोंमें राजा सुमित्रकी निंदा करने लगे । देखो यह राजा बडा दुष्ट है इससमय यह मुनिराजके आहारमें पूरा पूरा अंतराय कर रहा है। न यह दुष्ट स्वयं आहार देता है। और न किसी दूसरेको देने देता है।
मनुष्योंको इसप्रकार वातचीत करते स्न मुनि सुषण ईर्यापथ ध्यानस विचलित हो गये । आहारके न मिलनेसे मारे क्रोधके उनका शरीर लाल हो गया । वे विचारने लगेदेखो इस राजा की दुष्टता जिससमय मैं मुनि नहीं था उस समय भी यह मुझे अनेक संताप देता था । और अब मैं मुनि हो गया। इसके साथ मेरा कुछ भी संबंध न रहा तो भी यह मुझे संताप दिये बिना नहीं मानता । ऐसा नीच चांडाल कोई राजा नहीं दीख पडता। तथा इसप्रकार क्रोधांध हो मुनि सुषेण ने बड़े जोरसे किसी पत्थरमें लात मारी । लात मारते ही वे
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