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________________ ( २१७ ) णीय स्थान जो कि स्वर्गके निरालंब होनेके कारण, पृथ्वीपर गिरा हुवा स्वर्गका टुकड़ा ही है क्या ? ऐसी मनुष्यों को भ्रांति करनेवाला है आर्यखंड है । आर्यखंड में अपनी कांतिसे सूर्यकांतिको तिरस्कृत करनेवाला, जगद्विख्यात, समस्तदेशों का शिरोमणि सूर्यकांत देश है। सूर्यकांतदेशमें कुक्कुटसंपात्य ग्राम । मनोहर, पुरुषोंके चित्तोंको अनेकप्रकारसे आनंद प्रदान करनेवालीं उत्तमोत्तम स्त्रियां है । सर्वदा यह देश उत्तमोत्तन धान्य सोना, चांदी आदि पदार्थोंसे शोभित, आर ऊंचे ऊंचे धनिकगृह व्याप्त रहता है । इसीदेशमें एक नगर जो कि उत्त मोत्तम वावड़ी कूप एवं स्वादिष्ट धान्यों से शोभित है सूरपुर हं । सूरपुरके बाजार में जिससमय रत्नोंकी ढेरी नजर आती है उससमय यही मालूम होता है मानो पानी रहित साक्षात् समुद्र आकर ही इसकी सेवा कर रहा है । और जब ऊंचे ऊंच धनिक गृहोंकी शिखरपर सुवर्णकलश देखने में आते हैं तब यह जान पड़ता है मानो चंद्रमा इसनगरकी सदा सेवा करता रहता है । वह पर भक्तिभाव से उत्तमोत्तम जिनालयोंमें भगवानकी पूजाकर भव्यजीव अपने पापका नाश करते हैं । और मयूर जिससमय गवाक्षोंसे निकला हुवा सुगंधित धूत्रां देखते हैं तो उसे मेघ समझ असमयमें ही नाचने लग जाते हैं । एवं वहां कई एक भव्यजीव संसारभोगों से विरक्त हो 1 सर्वदाकेलिये कर्मबंधन से छूटजाते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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