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________________ ( १९८ ) राहत एवं अशुभ तेरा पति नाग ? हाय दुर्दैव! तुझै सहस्रवार धिक्कार है । तूने क्या जानकर यह संयोग मिलाया । अथवा ठीक है तेरी गति विचित्र है। बड़े बड़े देव भी तेरी गतिके पते लगानेमें हैरान हैं । तब हम कोंन चीज हैं। हाय विचारा तो कुछ और था, हो कुछ और ही गया। माताको इसप्रकार रोदन करती देख पुत्री नागदत्ताका भी चित्त पिघल गया। उसने शीघ्र ही विनयसे सांत्वनापूर्वक कहा मातः ? आज क्या हुवा। तू मुझे देख अचानक ही क्योंकर विलाप करने लगगई । कृपाकर इसका कारण शीघ्र मुझे कह____पुत्रीके इन विनयवचनोंने तो सागरदत्ताको रोदनमें और आधिक सहायता पहुंचाई--अब उसकी आंखोसे अविरल आसुओंकी झड़ी लग गई । प्रथम तो उसने नागदशाके प्रश्नका कुछ भी जवाव न दिया। किंतु जब उसने नागदत्ताका अधिक आग्रह देखा तो बड़े कष्टसे वह कहने लगी पुत्रि! मुझे और किसीकी ओर से दुःख नहीं किंतु इस युवा अवस्थामें तुझे पतिजन्य सुखसे सुखी न देख मैं सेती हूं। यदि तेरा पति कुरूप भी होता पर होता मनुष्य, तो मुझे कुछ दुख न होता परंतु तेरा पति नाग है। वह न कुछ कर सकता और न धर ही सकता है । इसलिये मेरे चित्तको अधिक संताप है । माताके ये वचन सुन प्रथम तो नागदत्ता हंसने लगी पश्चात् उसने विनयसे कहा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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