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अपने ऊपर वसंतने प्रसन्न देखा तो उसने अपना सारा हाल मंत्रवादीको कह सुनाया । और विनयसे बहुरूपिणी विद्याके लिये याचना भी की।
वसंतकी मंत्रकेलिये प्रार्थना सुन एवं उसकी सेवासे संतुष्ट होकर मंत्रवादी महाभीमने उसै विधिपूर्वक मंत्र देदिया । तथा मंत्र लेकर वसंत किसी वनमें चलागया। और उसै सिद्ध करने लगा । दैवयोगसे अनेक दिन वाद वसंतको मंत्र सिद्ध होगया । अव मंत्रवलसे वह छोटे बड़े शरीर धारण करने लगा । एवं अनेक प्रकारकी चेष्टा करनी भी उस ने प्रारंभ करदी।
कदाचित् उसके शिर पर फिर भद्राका भूत सवार होगया । किसी दिन वह अचानक ही मुर्गाका रूप धारणकर बलभद्र के घरके पास चिल्लाने लगा । मुर्गाकी आवाजसे यह समझ कि सवरा होगया अपने पशुओंको लेकर वलभद्र तो अपने खेतकी और रवाना होगया । और उस पापी वसंतने मुर्गाका रूप वदल शीघ्र ही बलभद्रका रूप धारण किया। और धृष्टता पूर्वक बलभद्रके घरमें घुस आया।
सुशीला भद्राकी दृष्टि नकली बलभद्र पर पड़ी । चाल दालसे उसे चट मालूम होगई कि यह मेरा पति बलभद्र नहीं । तथा उसने गाली देनी भी शुरू करदी । किंतु उस नकली वलभद्रने कुछ भी परवा न की । वह निर्लज्ज किवाड़
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