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________________ राजा मृगांकके ऐसे विनयभरे वचन सुन मुनिराजने कहा-राजन् ! इसीद्वीपमें आतशय उत्तम एक राजगृह नामका नगर है । राजगृह नगरके स्वामी, नीति पूर्वक प्रजाका पालन करनेवाले, महाराज श्रेणिक हैं । नियमसे उन्हीके साथ यह पुत्री विवाही जायगी। ___मुनिराजके ऐसे पवित्र वचन सुन, एवं उन्हें भक्तिपूर्वक नमम्कारकर, राजा मृगांक अपने घर लोट आये। और हे महाराजश्रेणिक ! तवसे राजा मृगांकने आपको देनेके लिये ही उसपुत्रीका दृढ़ संकल्प करलिया । अनेकवार मनाई करने परभी हंसदीपका स्वामी राजा रत्नचूल यद्यपि उस पुत्रीके साथ जवरन विवाह करना चाहता है । राजा मृगांकसे जवरन विलासवतीको छीन लेनेकेलिये रत्नचूलने अपनी सेनासे चौतर्फा नगरीको भी घेर लिया है। तथापि राजा मृगांक उसै पुत्री देना नहीं चाहता । मैंने ये बाते प्रत्यक्षदेखीं हैं । मैं यह समाचार सब आपको सुनाने आया हूं • अधिक समय तक मैं यहां ठहर भी नहीं सकता । अव आप जो उचित समझै सो करें। विद्याधर जंबुकुकारके वचन सुनते ही महाराज चुप चाप न बैठ सके। उन्होंने केरला नगरीको जानकेलिये शीघ्र ही तयारी करदी। एवं सेनापतिको बुला उसै सेना तयार करनेकेलिये आज्ञा भी दी। जंबुकुमारका उद्देश यह न था कि महाराज श्रेणिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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