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________________ के उससमय भी बुद्ध देवका वरावर ध्यान करते रहते थे। और बुद्धदेवकी कृपासे ही अपनेको राजा हुवा समझते थे। किसीसमय महाराज राजसिंहासनपर विराजमान होकर अपना राज्यकार्य कर रहे थे। अचानक ही एक विद्याधर जो कि अपने तेजसे समस्त भूमंडलको प्रकाशमान करता था, सभामें आया और महाराज श्रेणिकको विनय पूर्वक नमस्कार कर यह कहने लगा। हे देव ! इसी जंबूद्वीपकी दक्षिणदिशामें एक केरला नामकी प्रसिद्ध नगरी है। उस नगरीका स्वामी विद्याधरोंका अधिपति राजा मृगांक है । राजा मृगांककी रानीका नाम मालतीलता है जो कि समस्त रानियोंमें शिरोमणि, एवं रूपादि उत्तमोत्तम गुणोंकी खानि हैं । और महाराणी मालती लतासे उत्पन्न अनेक शुभलक्षणोंसे युक्त विलासवनी नाम की उसके एक पुत्री है। किसीसमय पुत्री विलासवतीको यौवनावस्थापन्न देख राजा मृगांकको उसकेलिये योग्य वरकी चिंता हुई । वे शीघही किसी दिगम्बर मुनिके पास गये । और उनसे इसप्रकार विनय भावसे पूछा। हे प्रभो ? मुने : आप भूत भविष्यत वर्तमान त्रिकालवर्ती पदार्थोंके भलेप्रकार जानकर हैं । संसारमें ऐसा कोई पदार्थ नहीं जो आपकी दृष्टि से बाह्य हो । कृपाकर मुझे यह वतावें पुत्री विलासवतीका वर कोंन होगा ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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