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________________ ~ ~ ~ ~ जवरन कुमारको जानेके लिये आज्ञा देनी पड़ी सेठि इंद्रदत्तसे आज्ञा लेकर कुमार प्रियतमा नंदश्रीके पास गये । उससे भी उन्होने इसप्रकार अपनी आत्मकहानी कहनी प्रारंभ करदी । हे प्रिये ! हे वल्लभे ! हे मनोहरे ! हे चंद्रमुखि ! हे गजगामिनि ! मेरे परंपरासे आया हुवा राज्य है अचानक मेरे पिताके शरीरांत होजानेसे मेरा भाई उस राज्यकी रक्षा कर रहा है। किं तु प्रजा उसके शासनसे संतुष्ट नहीं है । इसलिये अव मुझै राजगृह जाना जरूर है । हे सुंदरि जब तक मैं वहां न पहुचूंगा,राज्यकी रक्षा भलेप्रकार नहीं हो सकेगी। इससमय मैं तुझसे यह कहे जाता हूं जवतक मैं तुझे न बुलाऊं कुमार अभयके साथ तू अपने पिताके घर ही रहना । राज्यकी प्राप्ति होने पर तुझे मैं नियमसे बुलाऊगा इसमें संदेह नहीं। ____ अचानक ही कुमारके ऐसे वचन सुन रानी नंदश्रीके आखोंसे टप टप आंसू गिरने लगे । मारे दुःखके,कमलके समान फूला हुवा भी उसका मुख कुम्हला गया । और कुमारको कुछ भी जवाव न देकर वह निश्चल काष्टकी पुतल के समान खड़ी रहगई।किन्तु उसकी ऐसी दशा देख कुमारने उसे बहुत कुछ समझा दिया। और संतोष देने वाले प्रिय वचन कहकर शांतकरदिया। इसप्रकार प्रियतमा नंदश्रीसे मिलकर कुमार वहांसे चल | दिये । और राजगृह जाने के लिये तयार होगये । कुमार अब जारहे हैं सेठि इंद्रदत्तको यह पता लगा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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