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देशावकाशिक व्रत १४ भत्ते-भोजन, पानी के सम्बन्ध में भी मर्यादा करे कि मैं आज इतने प्रमाण से अधिक न खाऊँगा न पीऊँगा।
ये चौदह नियम देशावकाशिक व्रत के ही अन्तर्गत हैं। इन नियमों से व्रत विषयक जो मर्यादा रखो गई है उसका संकोच होता है और श्रावकपना भी सुशोभित होता है।
कई लोग इन चौदह नियमों के साथ असि, मसि और कृषि इन तीन को और मिलाते हैं। ये तीनों कार्य आजीविका के लिए किये जाते हैं। आजीविका के लिए जो कार्य किये जाते हैं, उनमें से पन्द्रह कर्मादान का तो श्रावक को त्याग ही होता है। शेष जो कार्य रहते हैं, उनके विषय में भी प्रतिदिन मर्यादा करे।
१ असि-शस्त्र, औजारादि के द्वारा परिश्रम करके अपनी जीविका की जाय, उसे 'असि' कर्म कहा जाता है।
२ मसि-कलम, दवात, कागज के द्वारा लेख या गणित कला का उपयोग किया जाय, उसे 'मसि' कर्म कहा जाता है।
३ कृषि-खेती के द्वारा या उन पदार्थों का क्रय-विक्रय करके आजीविका की जाय उसको 'कृषि' कर्म कहा जाता है।
उपरोक्त तीनों विषय में श्रावकोचित कार्य की मर्यादा रख कर शेष के त्याग करे।
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