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सामायिक कैसी हो
कुवयण सहवाकारे सछंद संखेय कलहं च । विग्गहा वि हासोऽशुद्धं निरवेक्खो मुणमुणा दोसादस ॥
१ कुवचन-सामायिक में कुत्सित वचन बोलना कुवचन' नाम का दोष है।
२ सहसाकार-बिना विचारे सहसा इस तरह बोलना, कि जिससे दूसरे को हानि हो और सत्य भंग हो तथा व्यवहार में अप्रतीति हो, 'सहसाकार' नाम का दोष है।
३ सच्छन्द-सामायिक में ऐसे गीत गाना, जिससे अपने या दूसरे में कामवृद्धि हो, 'सच्छन्द' दोष है ।
४ संक्षेप-सामायिक के पाठ या वाक्य को थोड़ा करके बोलना, 'संक्षेप' दोष है।
५ कलह-सामायिक में कलहोत्पादक वचन बोलना, 'कलह' दोष है।
६ विकथा-बिना किसी सदुद्देश्य के खो-कथा श्रादि चार विकथा करना, 'विकथा' दोष है ।
७ हास्य-सामायिक में हँसना, कौतुहल करना अथवा व्यंग पूर्ण शब्द बोलना, 'हास्य दोष' है।
८ अशुद्ध-सामायिक का पाठ जल्दी जल्दो शुद्धि का ध्यान रखे बिना बोलना या अशुद्ध बोलना 'अशुद्ध' दोष है।
8 निरपेक्ष-सामायिक में बिना सावधानी रखे बोलना 'निरपेक्ष' दोष है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com