________________
५१
सामायिक कैसी हो तथा ऐसी होनी चाहिए कि जिससे भलो-प्रकार पूँजा जा सके । इसी तरह माला भो ऐसी हो कि जिसे फिराने पर किसी तरह अयत्नान हो। वस्त्र भी सादे एवं स्वच्छ होने चाहिएँ। ऐसे चमकीले भड़कीले न होने चाहिएँ कि जिनसे अपने या दूसरे के चित्त में किसी प्रकार की अशान्ति हो, न ऐसे गन्दे ही हों कि जिनके कारण दूसरे को घृणा हो अथवा जिन पर मक्खियाँ भिनभिनाती हों। पुस्तकें भी ऐसी हों, जो आत्मा की ज्योति को प्रदीप्त करें । जिनसे किसी प्रकार का विकार उत्पन्न हो ऐसी पुस्तके न होनी चाहिएँ।
२ क्षेत्र शुद्धि-क्षेत्र से मतलब उस स्थान से है, जहाँ सामायिक करने के लिए बैठना है, या बैठा है। ऐसा स्थान भी शुद्ध होना आवश्यक है। जिस स्थान पर बैठने से विचार-धारा टूटती हो, चित्त में चंचलता आती हो, अधिक स्त्री-पुरुष या पशुपक्षो का आवागमन अथवा निवास हो, विषय-विकार उत्पन्न करने वाले शब्द कान में पड़ते हों, दृष्टि में विकार आता हो, या क्लेश उत्पन्न होने की सम्भावना हो, उस स्थान पर सामायिक करने के लिए बैठना ठीक नहीं है। सामायिक करने के लिए वही स्थान उपयुक्त हो सकता है, जहाँ चित्त स्थिर रह सके, आत्मचिंतन किया जा सके, गुरु महाराज या स्वधर्मी बन्धुओं का सामिप्य हो जिससे झान की वृद्धि हो सके। इस तरह के स्थान पर सामायिक करना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com