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सामायिक से लाभ
ज्ञानियों का कथन है, कि जो लोग कृत-पाप से मुक्ति पाने के लिए सामायिक करते हैं अर्थात् पाप-कार्य का त्याग न करके सामायिक द्वारा पाप के फल से बचना चाहते हैं, वे लोग वास्तव में सामायिक नहीं करते हैं, किन्तु धर्म ठगाई करते हैं। ऐसे व्यक्ति संसार से धर्म का अपमान कराते हैं और सामायिक का महत्व घटाते हैं । इतना ही नहीं किन्तु वे लोग अपने को अधिक पाप में फँसाते हैं । सामायिक से पाप नष्ट हो जाते हैं या पाप का फल नहीं भोगना पड़ता, ऐसी मान्यता वाले लोग पाप कर्म करने की ओर से निर्भय हो जाते हैं और पुनः पुनः पाप करते हैं । इसलिए इस तरह की मान्यता त्याज्य है । सामायिक करनेवाले का उद्देश्य पाप-कार्य से बचते रहना ही होना चाहिए। उसकी भावना यह रहनी चाहिए, कि सामायिक के समय हो नहीं, किन्तु संसार व्यवहार के समय भी मुझे आत्मा को विस्मृत न होना चाहिए और यदि मुझे आरम्भादि में प्रवृत्त होना पड़े, तो उन कार्यों में गृद्धि या मूर्छा न रखकर इस तरह का विवेक रखना चाहिए, कि जिसमें श्रास्रव के स्थान पर भी संवर निपजे । जो लोग ऐसी भावना रखते हैं और ऐसी भावना को कार्यान्वित करने का प्रयत्न करते हैं, उन्हीं का सामायिक करना सफल है और उन्होंने सामायिक करने का उद्देश्य भी समझा है । जिसमें इस तरह की भावना नहीं है, अथवा जो ऐसी भावना को कार्यान्वित करने का प्रयत्न नहीं करता है, उसने
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