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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
यह तो हुई सामायिक का फल आप हो जानने की बात। इस बात के साथ ही सामायिक करने वाले को संसार में अपना बाह्य व्यवहार भी ऐसा रखना चाहिए, कि जिससे सामायिक का फल प्राप्त होना जाना जा सके। इसके लिए उन कामों से सदा बचे रहना चाहिए, जो आत्मा में विषम-भाव उत्पन्न करते हैं। यद्यपि संसारव्यवहार में रहे हुए व्यकि के लिए हिंसा, झूठ आदि का सर्वथा त्याग करना कठिन है, फिर भी सामायिक करने वाले श्रावक का लक्ष्य यही होना चाहिए, कि मैं अन्य समय में भी हिंसा,झूठ आदि से जितना भी बच सकूँ, उतना ही अच्छा है । इस बात को लक्ष्य में रखकर श्रावक को उन कामों से सदा बचे रहना चाहिए कि जिन कामों से इस लोक में अपयश अपकीति होती है और परलोक बिगड़ता है।
कई लोग समझते हैं कि 'हम संसार व्यवहार में चाहे जो कुछ करें, हिंसा, झूठ, चोरी गादि पाप कार्य का कितना भी भाचरण करें, सामायिक कर लेने पर वे सब पाप नष्ट हो जाते हैं और हम पाप-मुक्त हो जाते हैं। संसार-व्यवहार तो पापपूर्ण ही है। पाप किये बिना संसार व्यवहार चल नहीं सकता।' इस तरह समझने के कारण कई लोग कृत पाप से मुक्ति पाने के लिए ही सामायिक करते हैं किन्तु पाप-कार्य का त्याग आवश्यक नहीं मानते हैं। लेकिन इस तरह की समझ वाले लोगों ने सामायिक करने का उद्देश्य नहीं समझा है, न उन्हें सामायिक का फल ही बात है।
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