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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
४२ ही मिला है। जिस सामायिक का तात्कालिक फल प्राप्त नहीं हुमा है, उसका परम्परा पर प्राप्त होने वाला फल भी कैसे मिल सकता है। शास्त्रकारों ने स्पष्ट ही कह दिया है, कि इस आत्मा ने द्रव्य सामायिक बहुत की है और रजोहरण मुखवत्रिका आदि उपकरण भी इतने धारण किये तथा त्यागे हैं कि एकत्रित करने पर उनका ढेर पर्वत की तरह हो सकता है, फिर भी उन सामायिकों या उपकरणों से आत्मा का कल्याण नहीं हुआ। इस असफलता का कारण सामायिक के तात्कालिक फल का न मिलना ही है। जिस सामायिक का तात्कालिक फल मिलता है, उसका परम्परा पर भी फल मिलता है और जिसका तात्कालिक फल नहीं मिलता उसका फल परम्परा पर भी नहीं मिलता।
लोग सामायिक के फल स्वरूप पोद्गलिक सुख चाहते हैं। यानी इस भव में धन, जन, प्रतिष्ठा आदि और पर-भव में इन्द्र महमिन्द्रादि पद प्राप्त होने की इच्छा करते हैं। यदि यह मिला तब तो सामायिक श्रादि धर्म करणी को सफल समझते हैं, अन्यथा निष्फल मानते हैं। इस प्रकार विपरीत फळ चाहने के कारण ही
आत्मा अब तक सामायिक के वास्तविक फळ से वंचित रहा है। यदि अब भी जात्मा की भावना ऐसी हो रही, आत्मा सामायिक के फळ स्वरूप इसी तरह की सांसारिक सम्पदा चाहता रहा, तो मात्मा उस आध्यात्मिक लाभ से वंचित रहेगा ही, जिसके सामने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com