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श्रावक के चार शिक्षाबत
३० चार भांगे हैं। यद्यपि कई लोग सर्व सामायिक ग्रहण करने के समय इस स्थिति पर पहुँचे हुए भी नहीं होते हैं, किन्तु दुःख अथवा किसी प्रलोभन के कारण उत्पन्न वैराग्य से सर्व विरती सामायिक स्वीकार कर लेते हैं और फिर ज्ञान होने पर उक्त स्थिति पर पहुँच जाते हैं फिर भी आदर्श तो उत्कृष्ट ही प्रतिपादन होगा। इसलिए यही कहा जा सकता है कि सर्व सामायिक वे हो लोग ग्रहण करने के योग्य है जिनमें उक्त योग्यता विद्यमान हो या सम्भावना हो। सर्व सामायिक वही ग्रहण करता है और सर्व सामायिक प्रहण करने का पाठ भी वही पढ़ता है जो गृहस्थावस्था त्याग कर दीक्षा ग्रहण करता हो । देश सामायिक और सर्व सामायिक ग्रहण करने के पाठ में अन्तर यह है कि सर्व सामायिक ग्रहण करने वाला अठारह पापों का यावज्जीवन के लिए त्याग करता है और देश सामायिक प्रहण करने वाला व्यक्ति अपनी सुविधानुसार एक, दो, चार, पाँच या अधिक मुहूर्त के लिए। यह भेद काल की अपेक्षासे हुवा, भाव की अपेक्षा से यह भेद है कि सर्व सामायिक ग्रहण करने वाला व्यकि अठारह पापों का तीन करण तीन योग सेत्याग करता है और देश सामायिक प्रहण करने वाला दो करण तीन योग से त्याग करता है । गृहस्थ श्रावक गृहस्थावस्था से पृथक नहीं हो गया है, इस कारण उससे अनुमोदन का पाप नहीं छूट सकता। इसलिए वह दो करण और तीन योग से ही पाप का त्याग करता है। यानि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com