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सामायिक का उद्देश्य
सत्य तथा सरल मान कर नाराज न हो 'माया मृषा' है। आजकल जिसे पॉलिसी कही जाती है, वह पॉलिसी शास्त्र के समीप 'माया मृषा' है, जो पाप है।
१८ मिथ्या दर्शन शल्य-तत्त्व में अतत्त्व-बुद्धि और मतत्त्व में तत्त्व-बुद्धि रखना, देव को कुदेव और कुदेव को देव, गुरु को कुगुरु और कुगुरु को गुरु, धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म मानना या ऐसी बुद्धि रखना 'मिथ्या दर्शन शल्य' रूप विपरीत मान्यता का पाप है।
ये अठारहों पाप स्थूल रूप हैं। सूक्ष्म रूप तो बहुत गहन हैं। सामायिक ग्रहण करने के समग इन अठारहों पापों का त्याग दो करण तीन योग से किया जाता है।
सामायिक दो तरह की होती है, एक देश सामायिक और दूसरी सर्व सामायिक । देश सामायिक ग्रहण करने वाला श्रावक अपने अवकाशानुसार समय के लिए उसी पाठ से सामायिक ग्रहण करता है, जो पाठ ऊपर कहा गया है। सर्व सामायिक केवल वे ही लोग ग्रहण करते हैं या कर सकते हैं, जिन्हें सांसारिक विषय कषाय से घृणा हो गई है। चक्रवर्ती को प्राप्त होने वाले सुख के साधन तथा भोग्य पदार्थ भी जिन्हें नहीं ललचा सकते हैं, दुःख के पहाड़ भी जिन्हें क्षुभित नहीं कर सकते हैं और जो पौद्गलिक पदार्थ से सर्वथा निर्ममत्व हो गये हैं। यद्यपि इस विषय में भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com