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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
जैसी श्रद्धा थी या वर्तमान वृद्ध लोगों में जैसी श्रद्धा देखी जाती है और वे सामायिक विषयक उपदेश-आदेश अथवा प्रेरणा का जितना आदर करते हैं, उतना आदर या सामायिक के प्रति वैसी श्रद्धा वर्तमान नवयुवकों में नहीं देखी जाती। इस अन्तर का कोई कारण भी अवश्य हो होना चाहिए। विचार करने पर इसका यही कारण जान पड़ता है, कि साधु महात्माओं अथवा धार्मिक गृहस्यों की ओर से सामायिक करने के लिए की जाने वाली प्रेरणा के परिमाण में सामायिक की विशद व्याख्या, सामायिक का महत्व एवं उद्देश्य आदि समझाने का प्रयत्न उतना नहीं किया जाता है। वर्तमान नवयुवकों के सामने न तो कोई ऐसा श्रापर्श ही है, न साहित्य ही है, जिसको देखकर सामायिक की ओर उनकी रुचि बढ़े। सामायिक विषयक जो थोडासा साहित्य है, वह भी ऐसा है, कि जिसे थोड़े से वे लोग ही जान सकते हैं, जिनकी गणना विद्वानों में है। जन साधारण में सामायिक विषयक साहित्य का प्रचार नहीं है। इस कारण सामायिक करने वाले लोगों में से अनेक लोग, सामायिक के मूल उद्देश्य के विरुद्ध सामायिक में होने पर भी ऐसे-ऐसे काम कर डालते हैं, जिनका करना उस समय सर्वथा अनुचित है जबकि सामायिक ग्रहण की हो। उस समय सामायिक ग्रहण किये हुए व्यक्ति को, एकान्त में बैठकर परमात्मा का भजन-स्मरण या ध्यान-चिंतन नादि
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