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निग्रहेण तु पापानां साधूनां संग्रहेण च । द्विजातय इवेज्याभिः पूज्यन्ते सततं नृपाः ।।
मनु० अ०८ श्लोक ३११ अर्थात्:- जिम प्रकार द्विज यज्ञों द्वारा पवित्र होते हैं उसी प्रकार राजा लोग पापियों को दंड देने तथा साधुओं की रक्षा करने से पवित्र हुश्रा करते हैं।
इस से मिलते जुलते लघ्वहनीति के उदाहरण पर पाठक जरा दृष्टि डालें:शिष्टानां पालनं कुर्वन् दुष्टानां निग्रहं पुनः । पूज्यते भुवने सर्वैः सुरासुर नृयोनिभिः ॥
__ लव. पृ० २२१ श्लोक ६. अर्थात्:- सज्जनों का पालन करने और दुष्टों का निग्रह करने वाले राजा लोग संसार में देव, राक्षस और मनुष्य सब के द्वारा पूजे जाते हैं।
बाल, अातुर और वृद्ध ये तीनों मनु और हेमचन्द्राचार्य दोनों की दृष्टि में क्षन्तव्य हैंक्षन्तव्यं प्रभुणा नित्यं क्षिपतां कार्यिणां नृणाम् । बालवृद्धातुराणांव कुर्वता हितमात्मनः ॥
मनु० अ० ८. श्लोक ३१२. अपना कल्याण चाहने वाले राजा तथा कार्यार्थी, बालक, वृद्ध तथा रोगी इन के द्वारा होने वाली निन्दा को क्षमा करता रहे । बालातुरातिवृद्धानां क्षन्तव्यं कठिनं वचः ॥
. लघ्व० पृ० २२१. श्लोक ६. अर्थात्:- बालक रोगी और अतिवृद्धों के कठिन वचन को भी क्षमा कर देना चाहिये।
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